जयपुर स्थित मोती डूंगरी गणेश मंदिर का दृश्य, श्रद्धालुओं की भीड़ और भव्य वास्तुकला के साथ
Posted on May 22, 2025

मोती डूंगरी गणेश मंदिर जयपुर: इतिहास, वास्तुकला

Written by : Rohit saini
Category: Ganesh Chaturthi 2025: Lord Ganesha Festival

भगवान गणेश का मोती डूंगरी मंदिर अपनी दिव्य शक्ति के लिए प्रसिद्ध है। यहां साल भर पर्यटकों और दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है।

गणेश चतुर्थी, कृष्ण जन्माष्टमी, अन्नकूट और पौष बड़ा जैसे त्यौहारों पर यह मंदिर आकर्षण का केंद्र होता है। शहर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का स्वाद लेने के लिए विद्वान और वास्तुकार यहां आते हैं। हजारों भक्त उत्सव की तैयारी में भाग लेते हैं और भगवान गणेश को अपना सम्मान देते हैं। भगवान गणेश की मूर्ति आकर्षण का मुख्य कारण है। हर बुधवार को मेला लगता है।

गणेश चतुर्थी के दौरान सभी गणेश मंदिरों को खूबसूरती से सजा दिया जाता है। इन दिनों के दौरान लोग कोशिश करते हैं कि वह अलग-अलग मंदिरों में जाकर भगवान के दर्शन कर सकें। भारते के कई मंदिरों में से एक है जयपुर का मोती डूंगरी गणेश मंदिर। मोती डूंगरी गणेश मंदिर राजस्थान के जयपुर में एक छोटी पहाड़ी की चोटी पर है और एक खूबसूरत महल से घिरा हुआ है। पत्थर की नक्काशी से बना ये मंदिर, संगमरमर पर उत्कृष्ट जाली के काम के लिए भी जाना जाता है। संगमरमर के पत्थरों पर उकेरी गई कई पौराणिक छवियां कला प्रेमियों को पसंद आएंगी। गणेश चतुर्थी के समय मंदिर को खूबसूरती से सजाया जाता है।

मंदिर का इतिहास

मोती डूंगरी मंदिर राजस्थान के जयपुर में मोती डूंगरी पहाड़ी और मोती डूंगरी किले के नीचे स्थित है। मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की मूर्ति पाँच सौ साल से भी ज़्यादा पुरानी बताई जाती है, और इसे 1761 में सेठ जय राम पालीवाल द्वारा यहाँ लाया गया था, जो महाराजा माधो सिंह प्रथम के साथ उदयपुर से आए थे । उन्हें गुजरात से उदयपुर लाया गया था । मंदिर का निर्माण पालीवाल की देखरेख में हुआ था।

वास्तुकला

मोती डूंगरी का लेआउट और संरचना नागर शैली में बनाई गई है और यह स्कॉटिश महल के मॉडल पर आधारित है । इसमें तीन प्रवेश द्वार और सामने कुछ सीढ़ियाँ हैं। इसका निर्माण चूना पत्थर और संगमरमर का उपयोग करके किया गया था और निर्माण कार्य 4 महीने में पूरा हुआ था।

सिंदूरी रंग के गणेश प्रतिमा की सूंड दाहिनी ओर है। भक्तगण लड्डू मिठाई का भोग लगाते हैं, हर साल कम से कम 1.25 लाख भक्तगण गणेश जी को सम्मान देते हैं। मंदिर परिसर में हर बुधवार को मेले का आयोजन किया जाता है।

मोती डूंगरी किला परिसर में एक लिंगम (भगवान शिव का प्रतीक) है, जो शिव के त्यौहार महाशिवरात्रि पर साल में एक बार आगंतुकों के लिए खुलता है। लक्ष्मी नारायण देवताओं को समर्पित बिड़ला मंदिर गणेश मंदिर के दक्षिण में स्थित है।

मान्यताएं

मान्यता है कि गणेश जी की दरबार में सच्चे दिल से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है, खासकर नौकरी, जीवन की समस्याओं और विवाह संबंधी इच्छाओं में।

गणेश चतुर्थी से एक दिन पूर्व गणेश जी को मेहंदी लगाई जाती है, जिसे बाद में भक्तों में प्रसाद स्वरूप बांटा जाता है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है, जिनका विवाह नहीं हो रहा। मान्यता है कि जो अविवाहित व्यक्ति इस मेहंदी को अपने हाथों में लगाता है, उसकी शादी अगले गणेश चतुर्थी से पहले हो जाती है। इस दिन मोती डूंगरी मंदिर में राजस्थान भर से श्रद्धालु पहुंचते हैं और मेहंदी का प्रसाद प्राप्त करते हैं।

नये वाहनों का पूजन

मंदिर में हर बुधवार को नए वाहनों की पूजा कराने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ लगी होती है। माना जाता है कि नए वाहन की पूजा मोती डूंगरी गणेश मंदिर में की जाए तो वाहन शुभ होता है। लोगों की ऐसी ही आस्था जयपुर की पहचान बन चुकी है।

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